Ek Katha/एक कथा

एक कथा....

एक राज्य था ,वहां का राजा जनता द्वारा चुना जाता था , राजा और प्रजा सभी खुशहाल जिन्दगी जीते थे , वहां एक प्रथा सदियों से चली आ रही थी ..हर दो साल के बाद राजा को राज्य के बाहर स्तिथ नदी को पार कर ,जंगल में जाकर ,दो महीने काटना होता था
यदि दो महीने बाद ,राजा वापस आ गया तो उसे ही राजा बना दिया जाता था ,नही तो दुसरे राजा का चुनाव घोषित कर दिया जाता था
इस बार भी राजा के दो साल पुरे हो गए थे ,.. प्रजा दुखी भाव से प्रथा के अनुसार ,गाते - बजाते अपने राजा को नदी तक छोड़ने आयी थी ,प्रजा ने बड़े ही शानदार तरीके से इस राजा के राज्य में जीवन-यापन किया था अत: उन्हें अपने राजा से अत्यंत लगाव था ,पर नदी के पार स्तिथ , भीषण जंगल और जंगली जानवरों से बचकर कोई भी आजतक जीवित वापस नही लौटा था ,सभी मन ही मन उन्हें अंतिम विदाई दे रहे थे ...
दो महीने के बाद , राजा के राज्यभिषेक का समय आया ,औपचारिकता के तहत प्रजा नदी के किनारे ,अपने पुराने राजा को लेने गयी , उन्हें विश्वास था कि अबतक तो राजा का नामो -निशान भी मिट चूका होगा ,पर आश्चर्य कि राजा सही सलामत थे और प्रसन्नता पूर्वक ,निश्चित समय पर अपनी प्रजा का इंतज़ार कर रहे थे... प्रजा में हर्ष की सीमा नही रही ….सभी जानना चाहते थे कि ये चमत्कार कैसे हुआ ?
राजा ने बताया .. राजगद्दी सँभालते ही उन्हें ज्ञात था कि दो साल बाद उन्हें जंगल में जाकर दो महीने बिताने होंगे ,उन्होंने तत्काल ही लोगों को भेजकर जंगल में सुरक्षित महल बनवा लिया ,और समय आने पर ,बिना किसी व्यवधान के , अपने वनवास को काट वापस आ गए ... ,सभी सोच में पड़ गए , इतना सरल उपाय था फिर भी ...!

दोस्तों
एक दिन हमें भी न कहना पड़ जाये कि इतना आसान था सबकुछ, फिर भी हम जिए कहाँ ,बस एक -एक पल को घसीट- घसीटकर ये उम्र निकालते आये.
यहाँ राजा हम हैं ,जो 50 साल या उससे ज्यादा की उम्र पार कर चुके हैं और शायद अकेलेपन के जंगल जाने के दिन को पास आते देख भी रहे हैं ,पर शायद मान बैठे हैं कि इस मुसीबत से उबरने का कोई रास्ता नही है
खासकर हम नौकरी करने वाले जिनकी 50 के आस- पास पहुँचते ही रिटायरमेंट का ख्याल जबरन दस्तक देने लगता है , अभी तक तो नौकरी और बच्चे के हिसाब से घर बदलते रहे , अब बच्चे बड़े हो रहे हैं या हो गए हैं , उन्हें अपने हिसाब से जीवन जीने की आज़ादी चाहिए
हमारे पास उन्हें देने के लिए बहुत कुछ है इस सोच के साथ हम उनके साथ बने रहना चाहते हैं पर उन्हें अपने freedom की कीमत पर कुछ नही चाहिए
सही तो यही होगा कि जिस स्वाभिमान के साथ हम अपनी जिन्दगी बिताते आये हैं उसे बरक़रार रखने के लिए कोई ठोस कदम उठायें
सभी को पता है की हमारी उम्र जिस पड़ाव की तरफ बढ़ रही है वहां हमारे बच्चे हमारे पास या साथ नही रह पाएंगे , उन्हें हमने ही तो तैयार किया है अपना जीवन जीने के लिए , अब हम उनपर बोझ बने या वो हमें तिरस्कार के साथ रखें, बात तो एक ही है ,यदि हम अलग -अलग भी रहें तो साल के 5 से 10 दिन के लिए ,पूरे 365 दिन इंतज़ार में टकटकी लगाकर बैठे रहेंगे ..,
आज जो बंदा पूरी गृहस्थी और ऑफिस के काम की जिम्मदारी बखूबी निभा रहा है , कल एक पेपर के टुकड़े द्वारा उसे कहा जाता है कि वो रिटायर हो गया है , अब काम करने लायक नही रहा और पूरे समाज के साथ-साथ , हम भी इसे पूरे तन-मन से स्वीकार कर लेते हैं
हमारी efficiency क्या सच में अचानक खत्म हो सकती है , या ये अपना माइंड गेम है ? हमारे देश के राजनेता ज्यादातर इस उम्र के बाद ही ज्यादा सक्रीय दिखाई पड़ते हैं और जिसने ताउम्र काम किया ,वो सबकी द्रष्टि में बेकार करार कर दिया जाता है
हममें से बहुत दूसरी नौकरी के लिए प्रयासरत हो जाते हैं ..जिन्हें इस वक़्त भी आर्थिक तंगी है उनके लिए तो ठीक है पर दुसरे लोग फिर से एक नयी जंजीर में क्यूँ बंधना चाह रहे हैं
इस लॉक डाउन ने हमें बता दिया है कि हमारी वास्तविक जरूरतें कितनी कम है और हमने कितना बड़ा आडम्बर अपने लिए फैला रखा है . कहने का तात्पर्य है की हमें जीने के लिए बहुत ज्यादा पैसे की आवश्यकता नही है ,बस हमें अब वो चाहिए जिसे पाने की तमन्ना में आधे शतक गुजार दिए
ख़ुशी ही तो चाहते थे जिसे पाने की कोशिश में ,इसके इर्द गिर्द घूमते रहे , ढूंढते रहे ,ये आयी और जिम्मेदारी की सीढियों के साथ फिसलती चली गयी ,पर अब तो हम आज़ाद हैं अपनी जिम्मेदारी ,अपने हिसाब से उठाने के लिए , तो क्यूँ न हम ख़ुशी को ही अपना लक्ष्य बना लें या ख़ुशी में ही अपना जहाँ बना लें ..हम वो करें जो हमें ख़ुशी देती हो
आज हम हालत को अपने अनुकूल बनाकर आगे एक नया जीवन जी सकते हैं जहाँ आँख खोलते ही ये ख्याल न आये कि फिर से वही बोरिंग रूटीन वाला काम ,... हर दिन कुछ नया हो और ताउम्र हम सक्रिय रहें
जाहिर है ऐसी इच्छाओं को हम अकेले पूरा नही कर सकते ..उम्र की इस अवस्था में जंगल में मंगल करने के लिए कुछ साथी तो चाहिए
ऐसे ही विचारधारा को मिलाकर हम बना रहे हैं अपना जहाँ
आगे बढ़ने के पहले दिए गए सवालों से खुद को जाने--------

There was a kingdom, whose King was elected in a democratic way (by the people of the State). The King and his countrymen all lived a very happy life.
In that kingdom, there was an old age practice – After every 2 years, the King had to go to a forest by crossing the river situated outside His Kingdom and spend 2 months there. After the passage of 2 months, if the king would come back to his Kingdom, then he was retained as the king. If he did not come back, then elections for choosing a new King were declared.
This time also, on completion of 2 years, as per the practice, the people of that Kingdom had come to the riverside to say goodbye to their King, whom they all loved a lot. After all, they had lived a glorious life in those 2 years under the King’s rule. Hence, they all had come there dancing and singing, to see him off. But in their hearts, they were sad as they knew that across the river, the fierce forest and the wild animals had not spared anyone who visited there before and that this was their final goodbye to the King who they loved and admired so much.
2 months later, when the time of the coronation of the king came, the people of that kingdom gathered near the river as per the regular practice to receive the king – fully aware that by now, there would be no trace of the king left. To their utmost surprise, the king was happily waiting there for His people, hale, and hearty. The crowd felt glad to see their King back, and wanted to know how this miracle happened?
The king told them that when he took charge of the throne, he was aware of the fact that 2 years later, he would have to go the forest across the river and spend 2 months there. So, that very time, he had sent a few of his people to the forest and got a palace built for him. This made his stay in the forest safe and protected him from wild animals. Because of this, he easily spent his time there and came back after 2 months to take care of his people. Everyone started wondering “it was so simple, still no one could think of this before….”

Friends,
We all would not want to get into such a situation wherein each one of us regrets later, thinking that it was all so simple, yet we just spent our lives and did not live it with grace and self-respect.
This is more applicable to us working class, who keep changing houses depending on their jobs or their kids, and by the age of 50, the fear of retirement and life post-retirement starts bothering. By this time, the kids are growing up, and even though we think that we have plenty to give to them in material and inexperience, they want their own space and freedom.
After all, we also know in our hearts that we have prepared them for this day when they would be on their own, and they may or may not be able to live with us for the rest of our lives. Having lived our entire life up to now with dignity, we also would not want to be a burden on our children or that they treat us with abandon in our twilight years. In such a case, we would be left wanting to be loved and respected.
Strangely but truly, a person who is the pillar of ownership and responsibility for his work and his home is suddenly told on a piece of paper that he is RETIRING! But it is us, each one of us, who starts thinking that by retiring, it not only means retirement from work but also retirement from LIFE itself!
Let’s pause for a moment and think, “Is retirement an overrated word? My office has retired me, but why am I retiring myself from life? Does retirement mean loss of efficiency? Or is it just a game that our society and our mind play on us to make us feel dependent and worthless?”
Some of us would start looking for a new job immediately. It's fine for those who have financial constraints, but for others is it really required?
The Lockdown has taught us that our needs are limited, but we kept working not only to fulfill our needs but also our wants. And wants have no limits!
Post-retirement is the time for a new life for those who do not have financial constraints, a life wherein we take our responsibility, but only for ourselves, the way we want to live our lives. We have the capacity to design our life as per our own choice. Then why not make happiness the goal for the remaining part of our lives, and make a new world inside the domain of happiness and joy – doing that which gives us happiness and not out of a routine? A life in which every day, each one of us looks forward to doing things of one’s own choice, something new, and which keeps us alive for the rest of our lives.
Each one of us can do this by himself or by herself, but how would it be if, in this amazing post-retirement or post 50 journeys, others become part of this madness, this aliveness? How would you want it to be - Alone or with lots of friends and partners in this journey?
With this idea in mind, we are creating a family called Apna Jahan
Before moving ahead, please answer the following questions for yourself:

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